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Romans

Romans 1

Romans 1:1-2

पौलुस के समय से पूर्व परमेश्वर ने किस माध्यम से सुसमाचार की प्रतिज्ञा की थी?

परमेश्वर ने पवित्र धर्मशास्त्र में अपने भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा सुसमाचार की पूर्व प्रतिज्ञा की थी।

Romans 1:3

शरीर के अनुसार परमेश्वर का पुत्र किसके वंशजों में जन्मा था?

शरीर के अनुसार परमेश्वर का पुत्र दाऊद के वंशजों में जन्मा था।

Romans 1:4

किस घटना के द्वारा मसीह यीशु को परमेश्वर का पुत्र घोषित किया गया था?

मसीह यीशु पुनरुत्थान के द्वारा परमेश्वर का पुत्र कहलाया।

Romans 1:5-7

पौलुस ने मसीह से अनुग्रह और प्रेरिताई किस उद्देश्य के निमित्त प्राप्त की थी?

सब जातियों में आज्ञाकारिता और विश्वास के लिए पौलुस को अनुग्रह और प्रेरिताई मिली।

Romans 1:8-10

रोम के विश्वासियों के बारे में पौलुस किस बात के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करता है?

पौलुस परमेश्वर का धन्यवाद करता है कि उनके विश्वास की चर्चा संपूर्ण जगत में हो रही थी।

Romans 1:11-12

पौलुस रोम के विश्वासियों से क्यों भेंट करना चाहता था?

पौलुस उनसे भेंट करने की कामना करता है कि वह उन्हें कोई आत्मिक वरदान दे जिससे वे स्थिर हो जाएं।

Romans 1:13-15

पौलुस अब तक रोम के विश्वासियों से भेंट क्यों नहीं कर पाया था?

पौलुस उनसे भेंट नहीं कर पाया था क्योंकि उसके मार्ग में अब तक बाधाएं आ रही थीं।

Romans 1:16

पौलुस सुसमाचार को क्या कहता है?

पौलुस कहता है कि हर एक विश्वासी के लिए सुसमाचार उद्धार के निमित्त परमेश्वर का सामर्थ्य है।

Romans 1:17

धर्मी जन के जीवित रहने के लिए पौलुस धर्मशास्त्र से क्या उद्धरण देता है?

पौलुस धर्मशास्त्र का उद्धरण देता है, "विश्वास से धर्मी जन जीवित रहेगा।"

Romans 1:18-19

परमेश्वर का ज्ञान जानते हुए भी अभक्त और अधर्मी जन क्या करते हैं?

अभक्त और अधर्मी सत्य को दबाए रहते हैं जबकि परमेश्वर का ज्ञान उनके मनों में प्रकट किया जा चुका है।

Romans 1:20

परमेश्वर के बारे में अप्रत्यक्ष बातें कैसे सृष्टि से स्पष्ट प्रकट हैं?

परमेश्वर के बारे में अप्रत्यक्ष बातें सृजित वस्तुओं से स्पष्ट प्रकट है।

परमेश्वर के कौन से गुण स्पष्ट प्रकट हैं?

परमेश्वर का अनन्त सामर्थ्य और उसका दिव्य स्वभाव स्पष्ट प्रकट है।

Romans 1:21-22

जो परमेश्वर का महिमान्वन नहीं करते और न धन्यवाद देते हैं उनके विचारों और मन का क्या होता है?

जो परमेश्वर का महिमान्वन नहीं करते और न ही उसका धन्यवाद करते हैं, अपने विचारों में मूर्ख बनते हैं और उनके मन अन्धकारपूर्ण होते हैं।

Romans 1:23-25

परमेश्वर ऐसे मनुष्यों के साथ क्या करता है जो उसकी महिमा को नाशवान मनुष्यों और पशुओं की समानता में बदल देते है?

परमेश्वर ने उन्हें अशुद्धता के लिए उनके मन की अभिलाषा के अनुसार छोड़ दिया कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें।

Romans 1:26-27

स्त्री और पुरुष किस निर्लज काम के लिए जलने लगे थे?

स्त्रियां एक-दूसरे के लिए और पुरुष एक-दूसरे के लिए कामातुर होने लगे।

Romans 1:28

परमेश्वर ऐसे लोगों के साथ क्या करता है जो परमेश्वर को पहचानना नहीं चाहते हैं?

परमेश्वर उन्हें उनके भ्रष्ट मन पर छोड़ दिया कि वे अनुचित काम करें।

Romans 1:29-31

जिनके मन भ्रष्ट हैं उनके कुछ लक्षण क्या हैं?

जिनके मन भ्रष्ट हैं वे डाह, हत्या, झगड़े और छल और सब बुरी अभिलाषाओं से घिरे रहते हैं।

Romans 1:32

भ्रष्ट मन वाले परमेश्वर की अनिवार्यता के बारे में क्या जानते हैं?

जिनके मन भ्रष्ट हैं वे जानते हैं कि ऐसे काम करने वाले मृत्यु दण्ड के योग्य हैं।

भ्रष्ट मन वाले परमेश्वर की अनिवार्यता को जानते हुए भी क्या करते हैं?

वे फिर भी अधर्म के काम करते हैं और ऐसे काम करने वालों को मान्यता प्रदान करते हैं।

Romans 2

Romans 2:1

कुछ लोग दोष लगाने में क्यों निरुत्तर हैं?

दोष लगाने वाले निरुत्तर हैं क्योंकि वे जिस बात का दोष लगाते हैं उसी के वे भी दोषी हैं।

Romans 2:2-3

अधर्म के काम करने वालों का न्याय परमेश्वर किस आधार पर करता है?

परमेश्वर जब अधर्म के काम करने वालों का न्याय करता है तब वह सत्य के आधार पर ऐसा करता है।

Romans 2:4

परमेश्वर का धीरज और भलाई का क्या उद्देश्य है?

परमेश्वर का धीरज और उसकी भलाई मनुष्य के मन फिराने के उद्देश्य से है।

Romans 2:5-6

परमेश्वर के प्रति कठोर और हठीला मन रखकर मनुष्य अपने लिए क्या कर रहा है?

कठोर और हठीले मन वाले लोग परमेश्वर के धर्मी न्याय के दिन के लिए क्रोध कमा रहे हैं।

Romans 2:7

जिन्होंने लगातार अच्छे काम किए हैं उन्हें क्या मिलेगा?

जो लगातार अच्छे काम करते हैं उन्हें अनन्त जीवन का दान मिलेगा।

Romans 2:8-11

अधर्म को मानने वालों का क्या होगा?

जो अधर्म को मानते हैं उन पर क्रोध और कोप और क्लेश और संकट आ पड़ेगा।

Romans 2:12

परमेश्वर यहूदी और यूनानी के मध्य निष्पक्षता कैसे दिखाता है?

परमेश्वर पक्षपात नहीं करता है, यहूदी हो या यूनानी पाप करने वाला नष्ट ही होगा।

Romans 2:13

परमेश्वर के समक्ष कौन धर्मी ठहराया जाएगा?

व्यवस्था पालन करने वाले परमेश्वर के सम्मुख धर्मी ठहराए जाएंगे।

Romans 2:14-16

अन्य जाति मनुष्य कैसे दिखाता है कि व्यवस्था की अनिवार्यताएं उसके मन में लिखी हैं?

अन्य जाति व्यवस्था की बातों को पूरा करके दिखाते है कि व्यवस्था की अनिवार्यताएं उसके मन में लिखी हैं।

Romans 2:17-20

पौलुस व्यवस्था पालन यहूदियों को क्या चुनौती देता है जब वे अन्यों को व्यवस्था की शिक्षा देते हैं?

पौलुस उन्हें चुनौती देता है कि जब वे किसी को व्यवस्था सिखाते हैं तो वे स्वयं को भी सिखाएं।

Romans 2:21-22

पौलुस कौन-कौन से पापों का उल्लेख करता है जिनका त्याग यहूदी शिक्षकों को करना आवश्यक है?

पौलुस चोरी और व्यभिचार और मन्दिर लूटने के पापों का उल्लेख करता है।

Romans 2:23-24

व्यवस्था के यहूदी शिक्षकों द्वारा अन्य जातियों में परमेश्वर के नाम की निन्दा क्यों हो रही है?

परमेश्वर के नाम की निन्दा होती है क्योंकि व्यवस्था के यहूदी शिक्षक व्यवस्था का उल्लंघन करते हैं।

Romans 2:25

किसी यहूदी का खतना पौलुस के विचार में खतनारहित कैसे हो जाता है?

पौलुस कहता है कि यदि कोई यहूदी व्यवस्था का उल्लंघन करे तो उसका खतना खतनारहित हो सकता है।

Romans 2:26-27

पौलुस के विचार में किसी खतनारहित मनुष्य को खतनाधारी कैसे कहा जा सकता है?

पौलुस कहता है कि अन्य जाति मनुष्य को खतनाधारी माना जा सकता है यदि वह व्यवस्था की अनिवार्यताओं को पूरा करता है।

Romans 2:28

पौलुस सच्चा यहूदी किसे कहता है?

पौलुस कहता है कि एक सच्चा यहूदी मन से यहूदी होता है, उसके मन का खतना होता है।

Romans 2:29

सच्चा यहूदी किससे प्रशंसा पाता है?

एक सच्चा यहूदी परमेश्वर से प्रशंसा पाता है।

Romans 3

Romans 3:1-3

यहूदियों के सौभाग्यों में सबसे पहले क्या है?

यहूदियों के सौभाग्यों में सबसे पहला है, उन्हें परमेश्वर का प्रकाशन सौंपा गया है।

Romans 3:4

सब झूठे हैं और परमेश्वर क्या पाया गया है?

यद्यपि हर एक मनुष्य झूठा है, परमेश्वर सच्चा है।

Romans 3:5-7

परमेश्वर धर्मी होने के कारण किसके योग्य है?

क्योंकि परमेश्वर धर्मी है, वह संसार का न्याय करने योग्य है।

Romans 3:8

जो कहते हैं कि बुराई करने से भलाई निकलती है उनका क्या होगा?

जो कहता है, "हम क्यों बुराई न करें कि भलाई निकले" वे दोषी ठहराए जाएंगे।

Romans 3:9-10

धर्मशास्त्र में यहूदी और यूनानी सबकी धार्मिकता के बारे में क्या लिखा है?

लिखा है, कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।

Romans 3:11-19

धर्मशास्त्र के लेख के अनुसार कौन समझदार है और कौन परमेश्वर को खोजता है?

जो लिखा है उसके अनुसार कोई समझदार नहीं, कोई परमेश्वर का खोजने वाला नहीं।

Romans 3:20

व्यवस्था के कामों से किसका न्याय होगा?

व्यवस्था के कामों से कोई धर्मी नहीं ठहरेगा।

व्यवस्था से क्या होता है?

पाप का बोध व्यवस्था से होता है।

Romans 3:21

अब व्यवस्थारहित धार्मिकता किसके द्वारा प्रकट हुई है?

व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं की गवाही द्वारा व्यवस्थारहित धार्मिकता प्रकट हुई है।

Romans 3:22-23

व्यवस्थारहित धार्मिकता कौन सी है जो प्रकट की गई है?

व्यवस्थारहित धार्मिकता मसीह में विश्वास के द्वारा सब विश्वासियों के लिए परमेश्वर की धार्मिकता है।

Romans 3:24

मनुष्य परमेश्वर के समक्ष धर्मी कैसे ठहरता है?

मनुष्य मसीह यीशु में निहित उद्धार के द्वारा परमेश्वर के सम्मुख उसके अनुग्रह से निर्मोल धर्मी ठहरता है।

Romans 3:25

परमेश्वर ने मसीह यीशु को किस उद्देश्य के निमित्त भेजा?

परमेश्वर ने विश्वास के द्वारा मसीह के लहू के कारण प्रायश्चित्त ठहराया है।

Romans 3:26-27

यीशु के द्वारा जो कुछ भी हुआ उससे परमेश्वर क्या दर्शाता है?

परमेश्वर ने प्रकट किया कि वही है जो किसी को भी यीशु में विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराता है।

Romans 3:28-29

धर्मी ठहराए जाने में व्यवस्था के कामों की क्या भूमिका है?

मनुष्य व्यवस्था के कामों के बिना विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराया जाता है।

Romans 3:30

परमेश्वर खतना वाले यहूदी और खतनारहित अन्य जाति को कैसे धर्मी ठहराता है?

परमेश्वर दोनों को विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराता है।

Romans 3:31

हम विश्वास के द्वारा व्यवस्था का क्या करते हैं?

हम विश्वास के द्वारा व्यवस्था को स्थिर करते हैं।

Romans 4

Romans 4:2

अब्राहम के पास गर्व करने का क्या कारण होता?

यदि अब्राहम कामों द्वारा धर्मी ठहरता तो उसके पास गर्व करने का कारण होता।

Romans 4:3-4

पवित्र शास्त्र अब्राहम की धार्मिकता के बारे में क्या कहता है?

पवित्र शास्त्र स्पष्ट कहता है कि अब्राहम ने परमेश्वर में विश्वास किया और वह उसके लिए धार्मिकता गिना गया।

Romans 4:5

परमेश्वर कैसे लोगों को धर्मी ठहराता है?

परमेश्वर अधर्मी को धर्मी ठहराता है।

Romans 4:6-8

दाऊद के अनुसार मनुष्य किस रीति से परमेश्वर द्वारा धन्य हुआ?

दाऊद कहता है कि धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म क्षमा हुए और धन्य है वह मनुष्य जिसे परमेश्वर पापी न ठहराए।

Romans 4:9-10

अब्राहम को विश्वास द्वारा धर्मी ठहराया गया तो वह उसके खतने से पूर्व या बाद में था?

अब्राहम के खतने से पूर्व वह विश्वास द्वारा धर्मी ठहराया गया था।

Romans 4:11-12

अब्राहम किस समूह का पिता है?

अब्राहम सब विश्वासियों का पिता है चाहे वे धर्मी खतना वाले हों या खतनारहित हों।

Romans 4:13

विश्वास की धार्मिकता द्वारा अब्राहम और उसके वंशजों से क्या प्रतिज्ञा की गई थी?

अब्राहम और उसके वंशजों से प्रतिज्ञा की गई थी कि वे संसार के उत्तराधिकारी होंगे।

Romans 4:14-15

यदि अब्राहम से की गई प्रतिज्ञा व्यवस्था के कारण थी तो क्या बात सच होती?

यदि प्रतिज्ञा व्यवस्था द्वारा आई थी तो विश्वास व्यर्थ और प्रतिज्ञा निष्फल ठहरी।

Romans 4:16

विश्वास के कारण प्रतिज्ञा करने के क्या कारण हैं?

प्रतिज्ञा विश्वास के कारण दी गई थी कि वह अनुग्रह के कारण हो वह सच हो।

Romans 4:17

पौलुस कौन सी दो बातें कहता है कि परमेश्वर करता है?

पौलुस कहता है कि परमेश्वर मृतकों में जान डालता है और जो नहीं है उसे अस्तित्व में लाता है।

Romans 4:18-22

कौन सी बाहरी परिस्थितियों ने अब्राहम को परमेश्वर की प्रतिज्ञा में विश्वास करने से रोका कि वह जातियों का पिता होगा?

जब परमेश्वर ने अब्राहम से प्रतिज्ञा की थी तब वह सौ वर्ष का था और सारा का गर्भ मरा हुआ था।

ऐसी बाहरी परिस्थितियों के उपरान्त भी अब्राहम ने परमेश्वर की प्रतिज्ञा में कैसे विश्वास किया?

अब्राहम परमेश्वर पर लगातार विश्वास करता रहा और अविश्वास में संकोच नहीं किया।

Romans 4:23-24

अब्राहम की यह बात किसके लिए लिखी गई थी?

यह वचन अब्राहम ही के लिए नहीं परन्तु हमारे लिए भी लिखा गया है।

Romans 4:25

हम क्या मानते हैं कि परमेश्वर ने हमारे लिए किया?

हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर ने यीशु को मृतकों में से जिलाया, वह हमारे पापों के लिए पकड़वाया गया था और हमें धर्मी ठहराने के लिए जिलाया भी गया।

Romans 5

Romans 5:1-2

विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाने के कारण विश्वासियों को क्या प्राप्त है?

क्योंकि विश्वासी विश्वास के द्वारा धर्मी ठहराए जाते हैं, प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर से उनका मेल है।

Romans 5:3-7

क्लेश कौन से तीन गुण उत्पन्न करते हैं?

क्लेश, धीरज, खराई और आशा उत्पन्न होती है।

Romans 5:8

परमेश्वर हमारे लिए अपना प्रेम कैसे सिद्ध करता है?

परमेश्वर हम पर अपना प्रेम इस रीति से प्रकट करता है कि हम जब पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिए मरा।

Romans 5:9

मसीह के लहू से धर्मी ठहराए जाकर हम किस बात से बचे हैं?

मसीह के लहू द्वारा धर्मी ठहराए जाकर विश्वासी परमेश्वर के क्रोध से बचाए गए हैं।

Romans 5:10-11

मसीह यीशु के द्वारा परमेश्वर से मेल करने से पूर्व अविश्वासियों का सम्बन्ध परमेश्वर के साथ कैसा है?

मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल करवाने से पहले अविश्वासी परमेश्वर के बैरी है।

Romans 5:12-13

एक मनुष्य के पाप के कारण क्या हुआ?

एक मनुष्य के पाप करने के कारण पाप संसार में आ गया और पाप के द्वारा मृत्यु आई और मृत्यु सब लोगों में फैल गई।

Romans 5:14

वह एक मनुष्य कौन था जिसके द्वारा पाप संसार में आया?

आदम वह एक मनुष्य था जिसके द्वारा पाप संसार में आया।

Romans 5:15

परमेश्वर का वदान्य अनुग्रह आदम के अपराध से किस प्रकार भिन्न है?

आदम के अपराध से बहुत लोग मरे परन्तु परमेश्वर को वदान्य अनुग्रह बहुतों पर बहुतायत से हुआ।

Romans 5:16

आदम के पाप का परिणाम क्या हुआ और परमेश्वर के वदान्य वरदान का परिणाम क्या हुआ?

आदम के पाप के कारण दण्ड की आज्ञा हुई। परन्तु परमेश्वर के वरदान के कारण लोग धर्मी ठहरे।

Romans 5:17-18

आदम के पाप का परिणाम क्या हुआ और परमेश्वर के वदान्य वरदान का परिणाम क्या हुआ?

आदम के अपराध के कारण मृत्यु ने राज किया, परन्तु जो परमेश्वर के वदान्य को पाते हैं वे मसीह यीशु के जीवन के द्वारा राज्य करेंगे।

Romans 5:19

आदम के आज्ञा न मानने के कारण मनुष्यों का क्या हुआ था और मसीह की धार्मिकता के द्वारा बहुतों का क्या होगा?

आदम की अवज्ञा के कारण अनेक जन पापी हुए परन्तु मसीह की आज्ञाकारिता के द्वारा अनेक जन धर्मी ठहराए जायेंगे।

Romans 5:20-21

व्यवस्था बीच में क्यों आई?

व्यवस्था बीच में आ गई कि अपराध बहुत हो।

पाप से अधिक क्या हुआ?

परमेश्वर का अनुग्रह पाप से अधिक हुआ।

Romans 6

Romans 6:1-2

क्या विश्वासी पाप करते रहे कि परमेश्वर का अनुग्रह बहुत हो?

कदापि नहीं।

Romans 6:3

मसीह यीशु का बपतिस्मा लेने वाले ने वास्तव में किसमें बपतिस्मा लिया है?

जिन्होंने मसीह का बपतिस्मा लिया है उन्होंने उसकी मृत्यु में बपतिस्मा लिया है।

Romans 6:4

मसीह यीशु मृतकों में से जी उठा है तो विश्वासियों को क्या करना चाहिए?

विश्वासियों को नये जीवन की चाल चलना है।

Romans 6:5

विश्वासी बपतिस्में के द्वारा दो प्रकार से मसीह की समानता में हैं वे क्या है?

विश्वासी मसीह की मृत्यु और पुनरूत्थान में मसीह के साथ एक होंगे।

Romans 6:6-8

हमारे लिये क्या किया गया था कि हमें अब पाप के दास नहीं रहना है?

हमारा पुराना मनुष्यत्व मसीह के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका है कि हम आगे को पाप के बन्दी न रहें।

Romans 6:9

हम कैसे जानते हैं कि मसीह पर मृत्यु की प्रभुता नहीं है?

हम जानते हैं कि मसीह पर मृत्यु की प्रभुता नहीं है क्योंकि मसीह मृत्तकों में से जी उठा है।

Romans 6:10-12

मसीह कितनी बार मरा और कितने लोगों के लिए मरा?

मसीह मरा तो एक ही बार मरा।

विश्वासी पाप के संबन्ध में स्वयं को क्या समझे?

विश्वासी स्वयं को पाप के लिए मरा हुआ समझे।

विश्वासी अपना जीवन किसके लिए जी रहा है?

विश्वासी परमेश्वर के लिए जी रहा है।

Romans 6:13

विश्वासी अपनी देह के अंग किसके हाथ दे और क्यों?

विश्वासी के लिए आवश्यक है वह अपने अंगों को धार्मिकता के साधन होने के लिए परमेश्वर के हाथों में दे दे।

Romans 6:14-15

विश्वासी किसके अधीन है जिनसे वह पाप पर प्रभुता करता है?

विश्वासी अनुग्रह के अधीन हैं जिससे वह पाप पर प्रभुता करता है।

Romans 6:16-21

जो मनुष्य स्वयं को पाप का दास होने के लिए दे देता है, उसका अन्त क्या होता है?

जो मनुष्य स्वयं को पाप का दास होने के लिए दे देता है, उसका अन्त मृत्यु है।

जो मनुष्य परमेश्वर का दास हो जाता है उसका फल क्या होता है?

जो मनुष्य स्वयं को परमेश्वर का दास होने के लिए दे देता है उसका फल धार्मिकता है।

Romans 6:22

परमेश्वर के दासों का फल क्या है?

परमेश्वर के दास होने का फल पवित्रता है।

Romans 6:23

पाप की मजदूरी क्या है?

पाप की मजदूरी मृत्यु है।

परमेश्वर का निर्मोल वरदान क्या है?

परमेश्वर का निर्मोल वरदान अनन्त जीवन है।

Romans 7

Romans 7:1

व्यवस्था कब तक मनुष्य पर प्रभुता करती है?

मनुष्य जब तक जीवित रहता है उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है।

Romans 7:2

एक विवाहित स्त्री व्यवस्था के अनुसार कब तक अपने पति से बंधी होती है?

एक विवाहित स्त्री पति की मृत्यु तक विवाह की व्यवस्था के अनुसार उससे बंधी है।

Romans 7:3

विवाह की व्यवस्था से मुक्त होकर एक स्त्री क्या कर सकती है?

जब वह विवाह की व्यवस्था से मुक्त हो गई तो पुनर्विवाह कर सकती है।

Romans 7:4-6

विश्वासी व्यवस्था के लिए कैसे मर गए हैं?

विश्वासी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिए मर गए हैं।

व्यवस्था के लिए मर जाने से विश्वासी किस योग्य हो जाते हैं?

व्यवस्था के लिए मर जाने से विश्वासी मसीह के साथ एक होते हैं।

Romans 7:7

व्यवस्था का क्या कार्य है?

व्यवस्था पाप का बोध करवाती है।

व्यवस्था पाप है या पवित्र है?

व्यवस्था पवित्र है, आज्ञा पवित्र, धर्मी और अच्छी है।

Romans 7:8-12

पाप व्यवस्था की आज्ञाओं के द्वारा क्या करता है?

व्यवस्था की आज्ञाओं के माध्यम से पाप मनुष्य में लालच उत्पन्न करता है।

Romans 7:13-15

पौलुस के अनुसार पाप उसमें क्या करता है?

पौलुस कहता है कि पाप व्यवस्था के माध्यम से उसमें मृत्यु लाता है।

Romans 7:16

व्यवस्था के साथ पौलुस को सहमत होने का कारण क्या है कि व्यवस्था भली है?

जब पौलुस वह काम करता है जिसे वह करना नहीं चाहता तो मान लेता है कि व्यवस्था भली है।

Romans 7:17

पौलुस जो काम नहीं करना चाहता उसका करवाने वाला कौन है?

पौलुस में जो पाप है वह उससे अनिच्छा के काम करवाता है।

Romans 7:18-20

पौलुस की देह में क्या है?

पौलुस की देह में कुछ भी अच्छा नहीं है।

Romans 7:21-22

पौलुस अपनी देह में एक सिद्धान्त को कार्य करता देखता है वह क्या है?

पौलुस अपनी देह में एक सिद्धान्त देखता है, वह भले काम तो करना चाहता है परन्तु उसकी देह में केवल बुराई वास करती है।

Romans 7:23-24

पौलुस अपनी अन्तरात्मा में और अपनी देह के अंगों में कौन सा सिद्धान्त प्रभावी देखता है?

पौलुस को यह बोध होता है कि उसकी अन्तरात्मा परमेश्वर की व्यवस्था से प्रसन्न है परन्तु उसकी देह के अंग पाप के बन्दी बने हुए है।

Romans 7:25

पौलुस को इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?

पौलुस मसीह यीशु के द्वारा उसकी युक्ति के लिए परमेश्वर को धन्यवाद चढ़ाता है।

Romans 8

Romans 8:2

पाप और मृत्यु की व्यवस्था से पौलुस को किसने मुक्ति दिलाई है?

मसीह यीशु में जीवन की आत्मा के सिद्धान्त ने पौलुस को पाप और मृत्यु की व्यवस्था से मुक्ति दिला दी है।

Romans 8:3

पाप और मृत्यु के सिद्धान्त से मुक्ति दिलाने में व्यवस्था अक्षम क्यों थी?

व्यवस्था अक्षम थी क्योंकि देह के कारण वह दुर्बल थी।

Romans 8:4-6

आत्मा के अनुसार चलने वाले किसमें मन लगाते हैं?

जो आत्मा के अनुसार चलते हैं वे आत्मा की बातों में मन लगाते हैं।

Romans 8:7-8

देह का परमेश्वर और व्यवस्था के साथ कैसा संबन्ध है?

देह परमेश्वर की विरोधी है इसलिए वह व्यवस्था के अधीन नहीं हो सकती है।

Romans 8:9-10

जो परमेश्वर के नहीं उनमें किस बात की कमी होती है?

जो मनुष्य परमेश्वर के नहीं अन्तर्वासी मसीह की आत्मा से वंचित होते हैं।

Romans 8:11-12

परमेश्वर विश्वासी की नश्वर देह को जीवन कैसे देता है?

परमेश्वर विश्वासी में अन्तर्वासी अपनी आत्मा के द्वारा उसकी नश्वर देह को जीवन देता है।

Romans 8:13-14

परमेश्वर के पुत्र जीवन के लिए कैसे चलाए जाते हैं?

परमेश्वर के पुत्र परमेश्वर की आत्मा द्वारा चलाए जाते हैं।

Romans 8:15-16

विश्वासी परमेश्वर के परिवार का सदस्य कैसे होता है?

विश्वासी परमेश्वर के परिवार में लेपालक है।

Romans 8:17-20

परमेश्वर की सन्तान होने के कारण विश्वासियों को और क्या लाभ हैं?

परमेश्वर की सन्तान होने के कारण विश्वासी परमेश्वर के उत्तराधिकारी वरन् मसीह के सह उत्तराधिकारी है।

विश्वासियों के लिए वर्तमान कष्ट भोगना आवश्यक क्यों है?

वर्तमान कष्टों को सहना आवश्यक है जिससे कि विश्वासी परमेश्वर के पुत्रों के प्रकट होने पर मसीह के साथ महिमान्वित हों।

Romans 8:21-22

वर्तमान में सृष्टि कैसे दासत्व में है?

वर्तमान में सृष्टि विनाश के दासत्व में है।

सृष्टि कैसे स्वतंत्रता प्राप्त करेगी?

सृष्टि परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।

Romans 8:23-25

विश्वासियों को देह के छुटकारे की कैसे प्रतीक्षा करना है?

विश्वासियों को विश्वास और धीरज धर कर देह के छुटकारे की प्रतीक्षा करना है।

Romans 8:26-27

पवित्र जनों की दुर्बलता में सहायता हेतु आत्मा स्वयं क्या करती है?

आत्मा स्वयं ही परमेश्वर की इच्छा के अनुसार पवित्रजनों की ओर से मध्यस्थता करती है।

Romans 8:28

परमेश्वर सब बातों को मिलाकर इससे प्रेम करनेवालों और उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए गए मनुष्यों के लिए कैसे क्या करती है?

परमेश्वर अपने प्रेम करने वालों के लिए सब बातों को मिलाकर भलाई ही को उत्पन्न करता है अर्थात जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाए गए हैं उनके लिए।

Romans 8:29

परमेश्वर ने जिन्हें पहले से जान लिया है उनके लिए क्या नियति ठहराई है?

क्योंकि परमेश्वर ने जिन्हें पहले से जान लिया है उन्हें पहले से निश्चित भी कर लिया है कि वे उसके पुत्र के स्वरूप में हों।

Romans 8:30-31

परमेश्वर ने जिन्हें पहले से निश्चित किया उनके लिए क्या किया है?

जिन्हें उसने पहले से निश्चित कर लिया है उन्हें बुलाया और धर्मी ठहराया और महिमा दी है।

Romans 8:32-33

विश्वासी कैसे जानते हैं कि परमेश्वर उन्हें सब कुछ वदान्य देगा?

विश्वासी जानते हैं कि परमेश्वर उन्हें सब कुछ वदान्य देगा क्योंकि उसने विश्वासियों के लिए अपना निज पुत्र दे दिया है।

Romans 8:34

मसीह यीशु परमेश्वर की दाहिनी ओर उपस्थित होकर क्या करता है?

मसीह परमेश्वर की दाहिनी ओर उपस्थित पवित्र जनों के लिए मध्यस्था करता है।

Romans 8:35-38

विश्वासी सताव क्लेश, या मृत्यु पर भी जयवन्त से बढ़कर कैसे हैं?

विश्वासी उसके द्वारा जो उनसे प्रेम करता है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं।

Romans 8:39

पौलुस को किस बात का विश्वास है कि सृजित वस्तु नहीं कर सकती?

पौलुस को पूर्ण विश्वास है कि कोई भी सृजित वस्तु विश्वासी को परमेश्वर के प्रेम से अलग नहीं कर सकती।

Romans 9

Romans 9:1-3

पौलुस को मन में शोक और अविराम दुःख क्यों है?

पौलुस को शरीर के भाव से अपने भाइयों, इस्राएलियों के लिए शोक और दुःख है।

Romans 9:4-5

इस्रालियों के इतिहास में उनके पास क्या है?

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Romans 9:6-7

सब इस्राएलियों और अब्राहम के वंशजों के साथ कौन सी एक बात सच नहीं है?

पौलुस कहता है कि इस्राएल में हर एक जन परमेश्वर का नहीं है और अब्राहम के वंशज उसकी सच्ची सन्तान नहीं है।

Romans 9:8-9

परमेश्वर की सन्तान में कौन नहीं गिने जाते हैं?

शरीर से उत्पन्न परमेश्वर की सन्तान नहीं गिनी जाती है।

परमेश्वर की सन्तान कौन गिने जाते हैं?

प्रतिज्ञा की सन्तान को परमेश्वर की सन्तान गिना जाता है।

Romans 9:10-13

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सन्तानोत्पत्ति से पूर्व ही रिबका से कहा गया था, "जेठा छोटे का दास होगा," रिबका से कही गई इस बात में निहित उद्देश्य क्या था?"

Romans 9:14-15

परमेश्वर की दया और अनुकंपा के वरदान का कारण क्या है?

परमेश्वर की दया और उसकी अनुकंपा के वरदान का कारण उसका चुनाव है।

Romans 9:16-19

परमेश्वर की दया और अनुकंपा में निहित कारण क्या नहीं है?

परमेश्वर की दया और अनुकंपा के वरदान में निहित कारण वरदान प्राप्त करनेवालों की इच्छा और कार्य नहीं हैं।

Romans 9:20-21

पौलुस ने उन लोगों को क्या उत्तर दिया कि जो पूछते हैं कि मनुष्य में दोष देखने के कारण क्या परमेश्वर धर्मी हो गया?

पौलुस उत्तर देता है, "भला तू कौन है, जो परमेश्वर का साम्हना करता है?"

Romans 9:22

परमेश्वर ने विनाश के लिए तैयार किए गए मनुष्यों के साथ क्या किया?

परमेश्वर ने विनाश के लिए तैयार किए गए मनुष्यों को अत्यधिक धीरज धर कर सहन किया है।

Romans 9:23

जो महिमा के लिए तैयार किए गए हैं उनके साथ परमेश्वर ने क्या किया है?

परमेश्वर ने उन पर अपनी महिमा का धन प्रकट किया है।

Romans 9:24-26

परमेश्वर ने अपनी दया के पात्रों को कौन से मनुष्यों में से बुलाया है?

परमेश्वर ने यहूदियों और अन्य जातियों दोनों में से उनको बुलाया है जिन पर उसकी दया है।

Romans 9:27-29

इस्राएल की सन्तानों में से कितने बचे रहेंगे?

इस्राएल की सन्तानों में से कुछ शेष जन बचे रहेंगे।

Romans 9:30

अन्यजाति जो धार्मिकता की खोज नहीं करते थे धार्मिकता कैसे प्राप्त की?

अन्यजातियों ने विश्वास के द्वारा धार्मिकता से उसे प्राप्त किया।

Romans 9:31

धार्मिकता की व्यवस्था का पालन करने पर भी इस्राएलियों को धार्मिकता प्राप्त क्यों नहीं हुई?

इस्राएली धार्मिकता प्राप्त नहीं कर पाए क्योंकि उन्होंने विश्वास से नहीं कर्मों से धार्मिकता की खोज की।

Romans 9:32

इस्राएलियों ने किससे ठोकर खाई थी?

इस्राएलियों ने ठोकर खाने के पत्थर और ठोकर खाने की चट्टान से ठोकर खाई थी।

Romans 9:33

जो ठोकर नहीं खाते, विश्वास करते हैं उनका क्या होगा?

जो ठोकर नहीं खाते, विश्वास करते है लज्जित नहीं होंगे।

Romans 10

Romans 10:1-2

पौलुस के मन में अपने भाइयों, इस्राएलियों, के लिए क्या इच्छा थी?

पौलुस इस्राएलियों के उद्धार की इच्छा रखता था।

Romans 10:3

इस्राएली किसका यत्न करते थे?

इस्राएली अपनी धार्मिकता स्थापित करने का यत्न करते थे।

इस्राएली किस बात से अनजान हैं?

इस्राएली परमेश्वर की धार्मिकता से अनजान हैं।

Romans 10:4-7

मसीह ने व्यवस्था के क्षेत्र में क्या किया है?

मसीह सब विश्वासियों के लिए धार्मिकता की व्यवस्था की पूर्ति है।

Romans 10:8

पौलुस जिस विश्वास के वचन का प्रचार करता था वह कहां है?

विश्वास का वचन निकट है, मुंह और मन में है।

Romans 10:9-12

मनुष्य के उद्धार के लिए पौलुस क्या कहता है?

पौलुस कहता है कि मनुष्य अपने मुंह से मसीह को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन में विश्वास करे कि परमेश्वर ने उसे मृतकों में से जिलाया है।

Romans 10:13

मनुष्य कैसे उद्धार पायेगा?

मसीह का नाम लेने वाला हर एक जन उद्धार पायेगा।

Romans 10:14-16

पौलुस मनुष्य तक सुसमाचार पहुंचाने के चरणों की कौन सी श्रृंखला बताता है कि मनुष्य प्रभु का नाम ले?

पौलुस कहता है पहले प्रचारक भेजा जाता है तब सुसमाचार सुना जाता है और उस पर विश्वास किया जाता है जिससे कि मनुष्य मसीह का नाम लेता है।

Romans 10:17

विश्वास उत्पन्न करने के लिए क्या सुना जाता है?

मसीह का वचन सुना जाता है और विश्वास उत्पन्न करता है।

Romans 10:18

क्या इस्राएल ने सुसमाचार सुना और जाना था?

हां, इस्राएल ने सुसमाचार सुना था और जानते थे।

Romans 10:19-20

परमेश्वर ने इस्राएल को रिस दिलाने के लिए अपने किस काम की चर्चा की थी?

परमेश्वर ने कहा कि वह उन लोगों पर प्रकट होकर इस्राएल को रिस दिलाएगा जो उसे पूछते भी नहीं थे।

Romans 10:21

जब परमेश्वर ने इस्राएल की ओर हाथ फैलाये तो क्या पाया?

परमेश्वर ने इस्राएल की ओर हाथ फैलाए तो देखा कि वह आज्ञा न मानने वाली और हठीली प्रजा है।

Romans 11

Romans 11:1-4

तो क्या परमेश्वर ने इस्राएल को त्याग दिया है?

कदापि नहीं।

Romans 11:5-6

क्या पौलुस कहता है कि विश्वासी इस्राएली बचे हैं, और यदि हैं तो वे सुरक्षित कैसे किए गए हैं?

पौलुस कहता है कि इस्राएल के परमेश्वर के शेष जन है, जो अनुग्रह के चुनाव से सुरक्षित किए जाते हैं।

Romans 11:7

इस्राएलियों में किसका उद्धार हुआ और शेष का क्या हुआ?

इस्राएलियों में जो चुने गए थे उनका उद्धार हो गया शेष जन कठोर हो गए।

Romans 11:8-10

परमेश्वर द्वारा उन्हें नींद में रखने का परिणाम सुसमाचार ग्रहण करने वालों का क्या हुआ?

नींद के कारण उनकी आंखें देख नहीं पाई और उनके कान सुन नहीं पाए।

Romans 11:11-12

इस्राएल ने सुसमाचार ग्रहण करने से इन्कार किया तो उससे क्या भलाई उत्पन्न हुई?

अन्य जातियों का उद्धार हुआ।

अन्य जातियों के उद्धार से इस्राएल पर क्या प्रभाव पड़ा?

अन्य जातियों का उद्धार इस्राएलियों के मन में ईर्ष्या उत्पन्न करेगा।

Romans 11:13-17

पौलुस द्वारा जैतून के वृक्ष की जड़े और जंगली डालियों की उपमा में जड़ कौन है और डालियां कौन है?

इस्राएल जड़ है और अन्य जातियां डालियां हैं।

Romans 11:18-19

पौलुस कहता है कि जंगली डालियों को किस स्वभाव से बचना है?

पौलुस कहता है कि जंगली डालियां को उन प्राकृतिक डालियों के विरुद्ध घमण्ड नहीं करना है।

Romans 11:20-22

पौलुस जंगली डालियों को क्या चेतावनी देता है?

पौलुस जंगली डालियों को चेतावनी देता है कि परमेश्वर ने अविश्वास के लिए स्वाभाविक डालियों को नहीं छोड़ा तो वह जंगली डालियों को भी नहीं छोड़ेगा।

Romans 11:23-24

स्वभाविक डालियां यदि अविश्वास में न रहें तो परमेश्वर उनके साथ क्या कर सकता है?

परमेश्वर उन स्वभाविक डालियों को अविश्वास में नहीं रहें पुनः जैतून के वृक्ष में रोपित कर सकता है।

Romans 11:25-27

इस्राएल का एक भाग कब तक कठोर बना रहेगा?

इस्राएल का एक भाग कब तक कठोर बना रहेगा जब तक अन्य जातियां इसी रीति से प्रवेश कर लें।

Romans 11:28-29

उनकी अवज्ञा के उपरान्त भी परमेश्वर इस्राएल से क्यों अब तक प्रेम करता है?

परमेश्वर इस्राएलियों को प्रेम अब भी करता है, उनके पूर्वजों के कारण क्योंकि वह बदलता नहीं।

Romans 11:30-32

परमेश्वर ने यहूदी और इस्राएली दोनों ही को क्या कहा है?

यहूदी और अन्य जाति दोनों ही ने आज्ञा नहीं मानी है।

परमेश्वर ने अवज्ञाकारों को क्या दिखाई है?

परमेश्वर ने यहूदी और अन्य जाति दोनों ही के अवज्ञाकारियों पर दया की है।

Romans 11:33-35

परमेश्वर के निर्णयों को समझने और उसे परामर्श देने का काम क्या कोई कर सकता है?

परमेश्वर के निर्णयों को कौन समझ सकता है और कौन उसे परामर्श दे सकता है?

Romans 11:36

कैसे तीन रूपों में सब कुछ परमेश्वर से संबन्धित है?

सब कुछ उसी की ओर से, उसी के द्वारा और उसी के लिए है।

Romans 12

Romans 12:1

विश्वासी के लिए परमेश्वर को चढ़ाने वाला बलिदान क्या है?

विश्वासी की आत्मिक सेवा है कि वह परमेश्वर को स्वयं का जीवित बलिदान चढ़ाए।

Romans 12:2

विश्वासी में नया मन उसे किस योग्य बनाता है?

मन नया हो जाने से विश्वासी परमेश्वर की भली, भावती और सिद्ध इच्छा अनुभव से ज्ञात कर लेते हैं।

Romans 12:3

विश्वासी स्वयं को क्या न समझे?

विश्वासी को जैसा स्वयं को समझना है उससे बढ़कर वह स्वयं को न समझे।

Romans 12:4-5

विश्वासी मसीह में एक दूसरे से कैसे संबन्धित हैं?

विश्वासी सब मसीह में एक देह हैं और व्यक्तिगत रूप से एक दूसरे के सदस्य हैं।

Romans 12:6-9

हर एक विश्वासी परमेश्वर प्रदत्त वरदान का क्या करे?

प्रत्येक विश्वासी को विश्वास के परिमाण के अनुसार वरदानों का उपयोग करना है।

Romans 12:10-12

विश्वासी परस्पर कैसा व्यवहार करें?

विश्वासी एक दूसरे से प्रेम रखें और एक दूसरे का सम्मान करें।

Romans 12:13

विश्वासियों को पवित्र जनों की आवश्यकताओं के लिए क्या करना चाहिए?

विश्वासियों को पवित्र जनों की आवश्यकता में हाथ बंटाना चाहिए।

Romans 12:14-15

विश्वासी अपने सताने वालों के लिए क्या करें?

विश्वासी अपने सताने वालों को कोसे नहीं; आशीर्वाद दें।

Romans 12:16-17

विश्वासी दीनों के साथ कैसा व्यवहार करें?

विश्वासी दीनों को ग्रहण करें।

Romans 12:18

विश्वासी भरसक प्रयास करके क्या करें?

यथासंभव सब मनुष्यों के साथ विश्वासी मेल रखें।

Romans 12:19-20

विश्वासियों को बदला क्यों नहीं लेना चाहिए?

विश्वासी बदला न लें क्योंकि बदला लेना परमेश्वर का काम है।

Romans 12:21

विश्वासी बुराई को कैसे जीतें?

विश्वासी भलाई से बुराई को जीत लें।

Romans 13

Romans 13:1

सांसारिक अधिकारियों को अधिकार कहां से प्राप्त होता है?

सांसारिक अधिकारी परमेश्वर की ओर से नियुक्त हैं।

Romans 13:2

सांसारिक अधिकारियों का विरोध करने वालों को क्या मिलेगा?

जो सांसारिक अधिकारियों का विरोध करते हैं वे दण्ड पायेंगे।

Romans 13:3

अधिकारियों से निर्भय रहने के लिए पौलुस विश्वासियों को क्या निर्देश देता है?

पौलुस विश्वासियों से कहता है कि वे भलाई करें जिससे कि वे अधिकारियों से निर्भय रहें।

Romans 13:4-5

परमेश्वर ने बुराई का दमन करने के लिए शासकों को क्या अधिकार दिया है?

परमेश्वर ने शासकों को तलवार उठाने का अधिकार दिया है कि बुरा करने वालों को क्रोध के अनुसार दण्ड दे।

Romans 13:6-7

पैसों के बारे में परमेश्वर ने शासकों को क्या अधिकार दिया है?

परमेश्वर ने शासकों को कर वसूलने का अधिकार दिया है।

Romans 13:8

वह एकमात्र ऋण क्या है जिसके अधीन विश्वासी रहें?

पौलुस कहता है कि वे प्रेम के ऋणी बनें।

विश्वासी व्यवस्था पूरी कैसे करता है?

विश्वासी अपने पड़ोसी से प्रेम करके व्यवस्था पूरी करता है।

Romans 13:9-11

पौलुस कौन सी आज्ञाओं को व्यवस्था कहता है?

पौलुस व्यभिचार न करना, हत्या न करना, लालच न करना व्यवस्था बताता है।

Romans 13:12

पौलुस विश्वासियों से क्या त्यागने और क्या अपनाने के लिए कहता है?

पौलुस कहता है कि विश्वासी अन्धकार के काम त्याग कर ज्योति के हथियार बान्ध लें।

Romans 13:13

विश्वासियों को कौन-कौन से काम नहीं करने हैं?

विश्वासियों को लीला क्रीड़ा, पियक्कड़पन, व्यभिचार, लुचपन, झगड़े और डाह में न पड़ें।

Romans 13:14

शरीर अभिलाषा के प्रति विश्वासी का व्यवहार कैसा हो?

विश्वासी शारीरिक अभिलाषा को स्थान न दें।

Romans 14

Romans 14:1

भोजन के बारे में मतभेद रखने वालो विश्वासियों का व्यवहार एक दूसरे के प्रति कैसा होना चाहिए?

भोजन के बारे में मतभेद रखने वाले विश्वासी एक दूसरे का न्याय न करें।

Romans 14:2

विश्वास में दृढ़ जन क्या खाता है और जो विश्वास में दृढ़ नहीं वह क्या खाता है?

विश्वास में दृढ़ मनुष्य कुछ भी खा लेता है परन्तु जिसका विश्वास दृढ़ नहीं वह केवल सब्जियां खाता है।

Romans 14:3-4

जो सब कुछ खाता है और जो केवल सब्जी खाता है उसे किसने ग्रहण किया है?

परमेश्वर ने सब कुछ खाने वाले को और केवल सब्जी खाने वाले दोनों को ग्रहण किया है।

Romans 14:5-6

ऐसे और कौन से विषय हैं जिन्हें पौलुस व्यक्तिगत मान्यता कहता है?

किसी दिन को दूसरे से बड़ा मानता या सब दिनों को बराबर मानना पौलुस के विचार में व्यक्तिगत विश्वास है।

Romans 14:7-9

विश्वासी किसके लिए जीते और किसके लिए मरते हैं?

विश्वासी प्रभु के लिए जीते हैं और प्रभु के लिए मरते हैं।

Romans 14:10-12

अन्त में सब विश्वासी कहां खड़े होंगे और उन्हें क्या करना होगा?

अन्त में सब विश्वासी परमेश्वर के न्याय आसन के समक्ष खड़े होकर अपना-अपना लेखा देंगे।

Romans 14:13

व्यक्तिगत मान्यता के कारण एक विश्वासी का व्यवहार दूसरे विश्वासी के साथ कैसा होना चाहिये?

व्यक्तिगत मान्यताओं के कारण भाई किसी भाई के लिए ठोकर का कारण न बने या फन्दा न बने।

Romans 14:14-16

प्रभु यीशु में पौलुस का मानना है कि कौन सा भोजन अशुद्ध है?

पौलुस का मानना है कि कोई भी भोजन अपने आप में अशुद्ध नहीं है।

Romans 14:17-20

परमेश्वर का राज्य क्या है?

परमेश्वर का राज्य धर्म और मेल-मिलाप और वह आनंद है जो पवित्र आत्मा से होता है।

Romans 14:21-22

शाकाहारी या मदिरा पान नहीं करने वाले के समक्ष पौलुस विश्वासी को क्या परामर्श देता है?

पौलुस का कहना है कि अन्य भाई के सामने मांस न खायें और मदिरा न पीये तो अच्छा है।

Romans 14:23

यदि कोई विश्वास के काम नहीं करता तो उसका परिणाम क्या है?

विश्वास के काम नहीं करना पाप है।

Romans 15

Romans 15:1-2

विश्वास में दृढ़ भाई का व्यवहार विश्वास में दुर्बल भाई की ओर कैसा होना चाहिये?

विश्वास में दृढ़ जन विश्वास में दुर्बल भाई को सह ले कि उसका निर्माण हो।

Romans 15:3

आत्म संतोष की अपेक्षा लोगों की सेवा करने के लिए पौलुस किसका उदाहरण देता है?

मसीह स्वयं को प्रसन्न करने के लिए नहीं, लोगों की सेवा करने के लिए जीता था।

Romans 15:4

पूर्वकाल के पवित्र शास्त्र के लिखे जाने का एक उद्देश्य क्या था?

जो पवित्र शास्त्र हमारे लिए पहले लिखे गये थे वे हमारे निर्देश के लिए थे।

Romans 15:5-9

पौलुस विश्वासियों से क्या चाहता है कि वे धीरज और पारस्परिक प्रोत्साहन के द्वारा करें?

पौलुस की मनोकामना है कि विश्वासी आपस में एक मन रहें।

Romans 15:10-12

पवित्र शास्त्र क्या कहता है कि परमेश्वर की करूणा के कारण अन्य जाति क्या करेंगी?

पवित्र शास्त्र कहता है कि अन्य जातियां आनन्द करेंगी और प्रभु की स्तुति करेंगी, उसमें विश्वास के साथ।

Romans 15:13-15

पौलुस क्या कहता है कि विश्वासी पवित्रआत्मा के सामर्थ्य से करने योग्य होंगे।

विश्वासी आनन्द और शान्ति से पूर्ण विश्वास में परिपूर्ण होंगे।

Romans 15:16-17

परमेश्वर ने पौलुस को क्या वरदान दिया जो उसका दूतकार्य था?

पौलुस का दूतकार्य है, अन्य जातियों में भेजा गया मसीह यीशु का सेवक बने।

Romans 15:18-19

अन्य जातियों की आज्ञाकारिता के निमित्त मसीह ने पौलुस के माध्यम से कैसे काम किए?

मसीह ने शब्दों एवं कार्यों द्वारा पौलुस के माध्यम से चिन्ह और चमत्कारों द्वारा, पवित्रआत्मा के सामर्थ्य ही काम किया है।

Romans 15:20-23

पौलुस सुसमाचार कहां सुनाना चाहता था?

पौलुस वहां सुसमाचार सुनाना चाहता था जहां मसीह का नाम नहीं सुना था।

Romans 15:24

पौलुस कहां जाना चाहता था कि मार्ग में रोम में रूकें?

पौलुस स्पेन की यात्रा की योजना बना रहा था कि मार्ग में रोम जा पाए।

Romans 15:25-26

इस समय पौलुस यरूशलेम क्यों जा रहा था?

पौलुस इस समय यरूशलेम जा रहा था कि वहां के पवित्र जनों के लिए अन्यजातियों द्वारा एकत्र किया गया दान उन्हें सौंप दे।

Romans 15:27-30

पौलुस क्यों कहता है कि अन्यजाति यहूदी विश्वासियों के भौतिक वस्तुओं के ऋणी हैं?

अन्यजाति यहूदी विश्वासियों के भौतिक वस्तुओं में ऋणी हैं क्योंकि वे यहूदी विश्वासियों की आत्मिक बातों में सहभागी हुए हैं।

Romans 15:31-33

पौलुस किससे बचाया जाना चाहता था?

पौलुस की मनोकामना है कि यहूदिया में वह अवज्ञाकारियों से बचाया जाए।

Romans 16

Romans 16:1-3

बहन फीबे पौलुस के लिए क्या थी?

बहन फीबे पौलुस और अनेक अन्य विश्वासियों की सहायक रही है।

Romans 16:4

प्रिस्का और अक्विला ने पूर्वकाल में पौलुस के लिए क्या किया था?

प्रिस्का और अक्विला ने पहले पौलुस के लिए अपनी जान जोखिम में डाली थी।

Romans 16:5-6

रोम में वह कौन सा एक स्थान था जहां विश्वासी एकत्र होते थे?

रोम के विश्वासी प्रिस्का और अक्विला के घर में एकत्र होते थे।

Romans 16:7-15

अन्द्रुनीकुस और यूनियास ने पहले पौलुस के साथ कैसा अनुभव प्राप्त किया था?

अन्द्रुनीकुस और यूनियास पूर्वकाल में पौलुस के साथ बन्दी बनाए गए थे।

Romans 16:16

विश्वासी एक दूसरे को कैसे नमस्कार करें?

वे आपस में एक दूसरे को पवित्र चुम्बन से नमस्कार करें।

Romans 16:17-18

उनमें फूट डालने और ठोकर का कारण होने के लिए कुछ लोग क्या कर रहे थे?

कुछ लोग शिक्षा के विपरीत चल रहे थे और सीधे-सादे मनवाले विश्वासियों को बहका रहे थे।

पौलुस फूट डालने वालों और ठोकर का कारण होने वालों के साथ कैसा व्यवहार करने के लिए कहता है?

पौलुस उन्हें निर्देश देता है कि वे फूट डालने वालों और ठोकर का कारण होने वालों से दूर रहें।

Romans 16:19

भलाई और बुराई के प्रति पौलुस के परामर्श में विश्वासियों का स्वभाव कैसा हो?

पौलुस विश्वासियों को चेतावनी देता है कि वे भलाई के लिए बुद्धिमान और बुराई के लिए भोले बने रहें।

Romans 16:20-21

शान्ति का परमेश्वर शीघ्र ही क्या करवायेगा?

शान्ति का परमेश्वर शैतान को शीघ्र ही उनके पांवों से कुचलवा देगा।

Romans 16:22

इस पत्र को वास्तव में किसने लिखा था?

तिरतियुस इस पत्र का लेखक है।

Romans 16:23-24

विश्वासी इरास्तुस का क्या उत्तरदायित्व था?

इरास्तुस उस कलीसिया का भण्डारी था।

Romans 16:25

जिस प्रकाशन को दीर्घकाल से गुप्त रखा गया था वह क्या है जिसका पौलुस प्रचार कर रहा था?

पौलुस मसीह यीशु के सुसमाचार के प्रकाशन का प्रचार कर रहा है।

Romans 16:26-27

पौलुस के प्रचार करने का उद्देश्य क्या था?

पौलुस अन्य जातियों में आज्ञा मानने के लिए प्रचार करता था।